एडवोकेट परीक्षा अव्यवहारिक
इस वर्ष प्रथम बार वकालत करने के लिए एल -एल .बी.उत्तीर्ण करने के बाद एक योग्यता परीक्षा भी उत्तीर्ण करनी होगी जिसका आयोजन बार काउन्सिल आफ इंडिया कर रही है .यद्यपि राज्यों के बार काउन्सिल ने इसका विरोध किया है ,परन्तु परीक्षा होगी और इसे उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा यदि न्यायालय जा कर वकालत करनी है । परीक्षा का औचित्य समझ से परे है । यदि इसके लिए छात्रों के विधि ज्ञान को न्यून स्तर का माना जा रहा है तो यह दोष बार काउन्सिल का ही है क्योंकि इसने बिना शिक्षक , बिना किसी सुविधा वाले अनेक शासकीय एवं अशासकीय महाविद्यालयों को विधि शिक्षा के लिए अनुमति दे रखी है . अनेक महाविद्यालयों में एक भी नियमित शिक्षक नहीं होते हैं ,बार काउन्सिल ने उनकी न तो मान्यता समाप्त की न ही उन पर शिक्षकों की नियुक्ति के लिए दबाव बनाया। अनेक छात्र कॉलेज जाते ही नहीं हैं .उनकी उपस्थिति के लिए कभी प्रयास नहीं किये गए . महाविद्यालयों में पुस्तकालयों में कानून की पुस्तकें हैं या नहीं ,कभी नहीं देखा गया । बार काउन्सिल को कानून शिक्षा व्यवस्था पर पूरा नियंत्रण रखना चाहिए।
राष्ट्रीय विधि महाविद्यालयों में कठिन प्रवेश परीक्षा के पश्चात ५ वर्षीय विधि स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश दिए जाते हैं । अनेक अन्य विधि संस्थानों में भी स्तरीय पढाई होती है ,वहां से उत्तीर्ण छात्रों को भी यह परीक्षा देनी होगी । यह उन संस्थानों तथा छात्रों की प्रतिष्ठा के विपरीत होगा । आई.आई.टी तथा आई आई एम् से उत्तीर्ण छात्रों के भी इंटर व्यू लिए जाते हैं पर उसके पश्चात् कंपनिया उन्हें अच्छे वेतन पर नियुक्ति देती हैं । क्या बार काउन्सिल परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों को कोई निश्चित आय का भी प्रावधान करने वाली है ? ऐसे अनेक संस्थान भी हैं जो परीक्षाएं लेते हैं ,प्रवेश के समय भी और पाठ्यक्रम पूर्ण करने पर भी . चार्टर्ड अकाउनटेंट ,कंपनी सेक्रेटरी ,ए एम् आई इ ,इलेक्ट्रानिक विभाग द्वारा 'ओ' ,'ए', 'बी','सी', स्तर की कंप्यूटर परीक्षा आदि । परन्तु इन संस्थानों के छात्रों को किसी संस्था में नियमित रूप से पढने का प्रावधान नहीं रखा गया है । कहीं भी पढो,कैसे भी पढो ,किसी भी पुस्तक से पढो ,इन संस्थाओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है .क्या भारत की बार काउन्सिल भी ऐसा प्रावधान करने जा रही है ? क्या अब विधि की शिक्षा किसी संस्थान में बिना शिक्षा ग्रहण किये ,निजी स्तर पर पढ़ कर भी उत्तीर्ण की जा सकेगी ?बार काउन्सिल यदि अपनी परीक्षा के स्तर का विश्वास करती है तो उसे इतना साहस भी दिखाना चाहिए कि अब तक जो छात्र बिना पढ़े विधि परीक्षा उत्तीर्ण करते चले आ रहे थे , उस व्यवस्था को घोषित रूप से स्वीकार कर ले ।
बार काउन्सिल आफ इंडिया को अनेक अन्य कार्य भी करने चाहिए जिससे वकीलों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हो। वकीलों के पहचान पत्रों को सरकार मान्यता नहीं देती है । चुनाव के समय मतदान करते समय , फोन ,मोबाईल ,गैस आदि का कनेक्शन लेने में ,बैंक में एकाउंट खुलवाने में या इसी प्रकार के अन्य कार्यों में वकील को बार काउन्सिल द्वारा दिए गए पहचान पत्र को स्वीकार नहीं किया जाता है ,न ही उसे सरकार द्वारा पहचान पत्रों कि सूची में रखा गया है .उसमें राशन कार्ड , ड्राइविंग लाइंसेंस , पासपोर्ट जैसे पहचान पत्र तो हैं जिन्हें एजेंटों के माध्यम से कैसे भी बनवाया जा सकता है और यह तथ्य सभी जानते भी हैं ,परन्तु राज्यों की बार कौंसिलों द्वारा दसवीं से लेकर अंतिम उत्तीर्ण परीक्षा तक तक सभी अंक सूचिओं तथा प्रमाणपत्रों को मूल रूप से मिलान कर दिए गए पहचान पत्र सरकारी नजर में कुछ नहीं हैं। बार काउन्सिल को मुकदमें जल्दी निपटाने तथा न्यायालयों पर बोझ कम करने के प्रयास भी करने चाहिए .अनेक गरीब लोग थोड़े से अर्थदंड न चुका पाने के कारण जेलों में पड़े रहते हैं । जाँच पड़ताल के बाद सरकार से उसे माफ़ करवाने के प्रयास करने चाहिए । भूमि प्रकरणों में भारी न्याय शुल्क को कम करवाना चाहिए .इनसे वकीलों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी ।
बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
राज्यों का विघटन
राज्यों के विघटन की प्रक्रिया
स्थिर सामाजिक -राजनीतिक व्यवस्था के मुख्या कारक हैं --संस्कृतिक एकता ,वैचारिक सामंजस्य ,परस्पर विश्वास ,दूसरों का सम्मान ,उपेक्षा एवं शोषण का अभाव , स्थिर राजनीतिक व्यवस्था तथा राजनीतिक दूरदृष्टि । सामान्य विश्लेषण के पूर्व इसे मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में समझना उपयुक्त होगा । १ नवम्बर १९५६ को महाकोशल तथा छत्तीसगढ़ मिलकर मध्य प्रदेश बना । बाद में मध्य भारत ,विन्ध्य प्रदेश एवं भोपाल राज्य का भी इसमें विलय हो गया। ४५ वर्ष पश्चात छत्तीसगढ़ इससे पृथक हो गया । मध्य प्रदेश में आज भी स्थापना दिवस पूर्व की भांति १ नवम्बर को बड़ी शानशौकत से मनाया जा रहा है । आपत्ति उत्सव मनाने पर नहीं है । दुःख इस बात का है की १ नवम्बर ही इसका विघटन दिवस भी है । मध्य प्रदेश का विघटन क्यों हुआ इस पर भी चर्चा - विचार विमर्श होना चाहिए था , जो नहीं हो रहा है । कल को अन्य क्षेत्र भी पृथक हो सकते हैं । छत्तीसगढ़ के पृथक होने का कारण उस क्षेत्र के लोगों का भारी शोषण था जिससे असंतोष उत्पन्न होता गया । छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सम्पदा का शोषण जम कर किया गया परन्तु उनके विकास पर ध्यान नहीं दिया गया । १९८८ में मैं जगदलपुर में पदस्थ था .जगदलपुर से विशाखा पट्टनम के लिए लौह अयस्क ढोने के लिए तो ट्रेन थी परन्तु मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल तथा उच्च न्यायालय जबलपुर आने के लिए कोई ट्रेन नहीं थी । धक्के खाते हुए पहले बस से रायपुर आइए फिर देखिए कि आगे क्या मिलेगा । कुल मिलाकर ऐसी व्यवस्था बना कर रखी गयी थी कि आदिवासी हमेशा के लिए आदिवासी बने रहें और महा पुरुष इच्छानुसार उनका शोषण करते रहें .इसी कारण से बिहार से झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल पृथक हुए । हमने कोई सबक नहीं सीखा .पूर्वांचल धधक रहा है .तेलंगाना आंध्र से पृथक होने को बेताब है ।
आज कश्मीर के विघटन की कगार पर पहुँचने पर कुछ लोगों के दुखी होने से समस्या हल होने वाली नहीं है .हम आजादी का जश्न मनाते आ रहे हैं । क्या हमने कभी सोचा है की भारत का विघटन क्यों हुआ ? आजादी के पूर्व भारतीय नेताओं में दूरदृष्टि नहीं थी । स्वार्थी मुस्लिम लीगी नेताओं ने सोचा की जैसे मुस्लिमों ने सदिओं से हिन्दुओं पर अत्याचार किये है हिन्दुओं का राज होगा तो वे बदला ले सकते हैं .यह भावना सांस्कृतिक एकता के अभाव और परस्पर अविश्वास के कारण उत्पन्न हुई । गाँधी - नेहरु जिन्ना का पूरा विश्वास करते थे परन्तु जिन्ना उनकी उपेक्षा के साथ सदिओं पुरानी आक्रान्ताओं की आक्रमण नीति का अनुसरण करता था । भारत से दो पाकिस्तान अलग हुए धर्म के नाम पर । परन्तु बाद में वहां पंजाबिओं - सिन्धिओं ने बंगालिओं की उपेक्षा तथा शोषण प्रारंभ कर दिया जिससे बंगलादेश बन गया .आज पाकिस्तान भावी विघटन की ओर बढ़ रहा है । इन्हीं कारणों से शक्तिशाली कहे जाने वाले युगोस्लाविया के तीन और रूस के २४ टुकड़े हो गए । नेताओं की तो छोडिए ,क्या किसी समाजशास्त्र -राजनीतिशास्त्र के प्रोफ़ेसर ने इन पर विचार करने का प्रयत्न किया ? भारतीय राजनीति पर पाकिस्तान समर्थकों का शिकंजा कस चुका है । इसलिए कश्मीर वार्ता के लिए बनाई गई समिति ने बिना कोई प्रयास किये घोषणा कर दी कि कश्मीर का हल पाकिस्तान ही निकाल सकता है और इस संगीत में भारतीयता की चादर ओढ़े अनेक सियार हुआ -हुआ करने लगे हैं । यदि हम अब भी मनमानी करते रहेंगे , बिना चिंतन किये जश्न में डूबे रहेंगे , सियारों से डरते रहेंगे तो कश्मीर के आगे भी विघटन की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है ।
स्थिर सामाजिक -राजनीतिक व्यवस्था के मुख्या कारक हैं --संस्कृतिक एकता ,वैचारिक सामंजस्य ,परस्पर विश्वास ,दूसरों का सम्मान ,उपेक्षा एवं शोषण का अभाव , स्थिर राजनीतिक व्यवस्था तथा राजनीतिक दूरदृष्टि । सामान्य विश्लेषण के पूर्व इसे मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में समझना उपयुक्त होगा । १ नवम्बर १९५६ को महाकोशल तथा छत्तीसगढ़ मिलकर मध्य प्रदेश बना । बाद में मध्य भारत ,विन्ध्य प्रदेश एवं भोपाल राज्य का भी इसमें विलय हो गया। ४५ वर्ष पश्चात छत्तीसगढ़ इससे पृथक हो गया । मध्य प्रदेश में आज भी स्थापना दिवस पूर्व की भांति १ नवम्बर को बड़ी शानशौकत से मनाया जा रहा है । आपत्ति उत्सव मनाने पर नहीं है । दुःख इस बात का है की १ नवम्बर ही इसका विघटन दिवस भी है । मध्य प्रदेश का विघटन क्यों हुआ इस पर भी चर्चा - विचार विमर्श होना चाहिए था , जो नहीं हो रहा है । कल को अन्य क्षेत्र भी पृथक हो सकते हैं । छत्तीसगढ़ के पृथक होने का कारण उस क्षेत्र के लोगों का भारी शोषण था जिससे असंतोष उत्पन्न होता गया । छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सम्पदा का शोषण जम कर किया गया परन्तु उनके विकास पर ध्यान नहीं दिया गया । १९८८ में मैं जगदलपुर में पदस्थ था .जगदलपुर से विशाखा पट्टनम के लिए लौह अयस्क ढोने के लिए तो ट्रेन थी परन्तु मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल तथा उच्च न्यायालय जबलपुर आने के लिए कोई ट्रेन नहीं थी । धक्के खाते हुए पहले बस से रायपुर आइए फिर देखिए कि आगे क्या मिलेगा । कुल मिलाकर ऐसी व्यवस्था बना कर रखी गयी थी कि आदिवासी हमेशा के लिए आदिवासी बने रहें और महा पुरुष इच्छानुसार उनका शोषण करते रहें .इसी कारण से बिहार से झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल पृथक हुए । हमने कोई सबक नहीं सीखा .पूर्वांचल धधक रहा है .तेलंगाना आंध्र से पृथक होने को बेताब है ।
आज कश्मीर के विघटन की कगार पर पहुँचने पर कुछ लोगों के दुखी होने से समस्या हल होने वाली नहीं है .हम आजादी का जश्न मनाते आ रहे हैं । क्या हमने कभी सोचा है की भारत का विघटन क्यों हुआ ? आजादी के पूर्व भारतीय नेताओं में दूरदृष्टि नहीं थी । स्वार्थी मुस्लिम लीगी नेताओं ने सोचा की जैसे मुस्लिमों ने सदिओं से हिन्दुओं पर अत्याचार किये है हिन्दुओं का राज होगा तो वे बदला ले सकते हैं .यह भावना सांस्कृतिक एकता के अभाव और परस्पर अविश्वास के कारण उत्पन्न हुई । गाँधी - नेहरु जिन्ना का पूरा विश्वास करते थे परन्तु जिन्ना उनकी उपेक्षा के साथ सदिओं पुरानी आक्रान्ताओं की आक्रमण नीति का अनुसरण करता था । भारत से दो पाकिस्तान अलग हुए धर्म के नाम पर । परन्तु बाद में वहां पंजाबिओं - सिन्धिओं ने बंगालिओं की उपेक्षा तथा शोषण प्रारंभ कर दिया जिससे बंगलादेश बन गया .आज पाकिस्तान भावी विघटन की ओर बढ़ रहा है । इन्हीं कारणों से शक्तिशाली कहे जाने वाले युगोस्लाविया के तीन और रूस के २४ टुकड़े हो गए । नेताओं की तो छोडिए ,क्या किसी समाजशास्त्र -राजनीतिशास्त्र के प्रोफ़ेसर ने इन पर विचार करने का प्रयत्न किया ? भारतीय राजनीति पर पाकिस्तान समर्थकों का शिकंजा कस चुका है । इसलिए कश्मीर वार्ता के लिए बनाई गई समिति ने बिना कोई प्रयास किये घोषणा कर दी कि कश्मीर का हल पाकिस्तान ही निकाल सकता है और इस संगीत में भारतीयता की चादर ओढ़े अनेक सियार हुआ -हुआ करने लगे हैं । यदि हम अब भी मनमानी करते रहेंगे , बिना चिंतन किये जश्न में डूबे रहेंगे , सियारों से डरते रहेंगे तो कश्मीर के आगे भी विघटन की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है ।
लिव इन रिलेशन शिप
कानून की भी सीमा होती है
जब स्त्री-पुरुष बिना विवाह के साथ -साथ रहते हैं ,तो उन्हें यह मानने का कोई अधिकार नहीं है की उन्हें भी उन कानूनों का लाभ मिलेगा जो समाज के शरीफ लोगों के लिए बनाए गए हैं .फिजा -चाँद मुहम्मद का प्रकरण सबके सामने है । चन्द्रमोहन के परिवार में हस्तक्षेप करने के लिए वे हिन्दू से मुसलमान बन गए । जब मुस्लिम क़ानून के अनुसार चाँद मुहम्मद ने तलाक दिया तो फिजा को हिन्दू धर्म जैसी वफ़ादारी याद आने लगी । उसे लगा की उसके साथ बड़ा अन्याय हो रहा है जबकि चन्द्रमोहन की धर्म पत्नी के साथ उसके द्वारा किये गए अन्याय को वह भूल गई.हिन्दू और मुस्लिम दोनों कानूनों का एक साथ लाभ उसे कैसे मिल सकता था ?पैसे या शरीर -सुख के लिए अथवा किसी गैर कानूनी कार्य के लिए यदि कोई महिला स्वेच्छा से किसी पुरुष के साथ रह रही है तो उसे विवाह के लाभों के लिए सोचने का भी अधिकार नहीं है । विवाह न करने का अर्थ है की वह भी किसी अच्छे अवसर पर दूसरे के साथ रह सकती है । विवाह सर्वाधिक प्राचीन सामाजिक संस्था है , बिना किसी कारण के उसका मजाक उड़ाने का किसी को अधिकार नहीं है .बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रहने वाली महिला को शुरू से ही रखैल कहा जाता है ,रखैल माना जाता रहा है जो पुरुष की यौन संतुष्टि के लिए है। फिर न्यायाधीश उसके लिए किस शब्द का प्रयोग करते जिससे स्त्री के सम्मान में वृद्धि हो जाती ? क्या कालगर्ल अथवा सेक्स वर्कर कहने से वेश्या के सम्मान में वृद्धि हो जाती है ? ऐसे लोगों को विवाह के लाभ और सम्मान क्यों मिलने चाहिए ? विवाह से दो व्यक्तियों ही नहीं परिवारों के मध्य कर्तव्यों तथा दायित्वों का सृजन होता है .विवाह के पश्चात् संपत्ति का अधिकार सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण है जिस पर प्रथम अधिकार स्वतः पत्नी या पति का हो जाता है .उसके पश्चात् बच्चों का अधिकार होता है और इसे समाज स्वीकार करता है .यदि स्त्री या पुरुष का विवाह नहीं हुआ है तो सम्पति पर उनके माता- पिता, भाई- बहनों का अधिकार होता है । विवाह के बिना संपत्ति के उत्तराधिकार के असंख्य प्रकारों के लिए व्यावहारिक क़ानून बनाना दुष्कर है । इसके साथ ही इससे समाज में अन्य विद्रूपताएँ भी उत्पन्न होंगी । अतः इसे यथा संभव हतोत्साहित करना चाहिए ।
जब स्त्री-पुरुष बिना विवाह के साथ -साथ रहते हैं ,तो उन्हें यह मानने का कोई अधिकार नहीं है की उन्हें भी उन कानूनों का लाभ मिलेगा जो समाज के शरीफ लोगों के लिए बनाए गए हैं .फिजा -चाँद मुहम्मद का प्रकरण सबके सामने है । चन्द्रमोहन के परिवार में हस्तक्षेप करने के लिए वे हिन्दू से मुसलमान बन गए । जब मुस्लिम क़ानून के अनुसार चाँद मुहम्मद ने तलाक दिया तो फिजा को हिन्दू धर्म जैसी वफ़ादारी याद आने लगी । उसे लगा की उसके साथ बड़ा अन्याय हो रहा है जबकि चन्द्रमोहन की धर्म पत्नी के साथ उसके द्वारा किये गए अन्याय को वह भूल गई.हिन्दू और मुस्लिम दोनों कानूनों का एक साथ लाभ उसे कैसे मिल सकता था ?पैसे या शरीर -सुख के लिए अथवा किसी गैर कानूनी कार्य के लिए यदि कोई महिला स्वेच्छा से किसी पुरुष के साथ रह रही है तो उसे विवाह के लाभों के लिए सोचने का भी अधिकार नहीं है । विवाह न करने का अर्थ है की वह भी किसी अच्छे अवसर पर दूसरे के साथ रह सकती है । विवाह सर्वाधिक प्राचीन सामाजिक संस्था है , बिना किसी कारण के उसका मजाक उड़ाने का किसी को अधिकार नहीं है .बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रहने वाली महिला को शुरू से ही रखैल कहा जाता है ,रखैल माना जाता रहा है जो पुरुष की यौन संतुष्टि के लिए है। फिर न्यायाधीश उसके लिए किस शब्द का प्रयोग करते जिससे स्त्री के सम्मान में वृद्धि हो जाती ? क्या कालगर्ल अथवा सेक्स वर्कर कहने से वेश्या के सम्मान में वृद्धि हो जाती है ? ऐसे लोगों को विवाह के लाभ और सम्मान क्यों मिलने चाहिए ? विवाह से दो व्यक्तियों ही नहीं परिवारों के मध्य कर्तव्यों तथा दायित्वों का सृजन होता है .विवाह के पश्चात् संपत्ति का अधिकार सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण है जिस पर प्रथम अधिकार स्वतः पत्नी या पति का हो जाता है .उसके पश्चात् बच्चों का अधिकार होता है और इसे समाज स्वीकार करता है .यदि स्त्री या पुरुष का विवाह नहीं हुआ है तो सम्पति पर उनके माता- पिता, भाई- बहनों का अधिकार होता है । विवाह के बिना संपत्ति के उत्तराधिकार के असंख्य प्रकारों के लिए व्यावहारिक क़ानून बनाना दुष्कर है । इसके साथ ही इससे समाज में अन्य विद्रूपताएँ भी उत्पन्न होंगी । अतः इसे यथा संभव हतोत्साहित करना चाहिए ।
रविवार, 24 अक्टूबर 2010
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
नई जिंदगी
नई जिंदगी
मुझे पेट की शिकायत युवावस्था से थी । ५० वर्ष की आयु के बाद कष्ट अधिक बढ़ गए । ५५ वर्ष की अवस्था में रक्त युक्त दस्तों की संख्या १५ - २० प्रतिदिन तक हो गई । बहुत कठिनाई से ज्ञात हुआ कि बड़ी आंत में कैंसर है और दूसरी अवस्था में पहुँच गया है । चिकित्सा के लिए मैं कैंसर अस्पताल गया । वहां मुझे जो कुछ समझाया गया और जो कुछ मेरी समझ में आया कि मै इलाज करवाऊं तो २ साल और जी सकता हूँ । मुझे यह भी बतलाया गया कि मल के लिए एक थैली पेट के साइड से निकाली जायेगी जो हमेशा के लिए भी रह सकती है . मैं इस अवस्था में जीने के लिए तैयार नहीं था । घर वालों के दबाव के कारण इलाज करवाना पड़ रहा था । इलाज के बाद शासन से प्रतिपूर्ति प्राप्त हो जाए ,इसलिए भोपाल के हमीदिया अस्पताल से आवेदन अग्रेषित करवाने गया । वहां सर्जरी विभाग में मुझे डा . अरविन्द राय मिले । उन्होंने जाँच रिपोर्ट देखी और मुस्कुराते हुए बोले - "इसमें अग्रेषित करवाने कि क्या बात है । आप आज अस्पताल में भर्ती हो जाइये । आपरेशन करके दो दिनों में आपको रोग मुक्त कर देंगें ।" मैंने उनसे थैली कि समस्या बताई । उन्होंने कहा कि आपको थैली नहीं लगेगी । मैं उनकी बातों से आश्वस्त हो गया । हमीदिया अस्पताल के कैंसर विभाग के अध्यक्ष डा . ओ. पी . सिंह के निर्देश पर पहले ३ सप्ताह रेडियो थेरेपी कि गई जब कि कैंसर अस्पताल में ६ सप्ताह की थेरेपी बताई गई थी । आपरेशन से पूर्व मैंने डा . राय से कहा कि मेरे तो छोटे आपरेशन के घाव भी कई दिनों में भर पाए थे । डा .राय ने कहा ,''हम किस लिए हैं .आप कोई चिंता न करें । '' ४-५ घंटे आपरेशन चला । ९ इंच बड़ी आंत काटकर अलग कि गई । ११ दिनों में मुझे घर भेज दिया गया । लौटते समय रास्ते में मैंने स्वयं फल ख़रीदे . अस्पताल में जूनियर डाक्टरों ने इतनी तत्परता से काम किया कि मुझे पता ही नहीं चला कि मै बीमार हूँ । मैं सभी काम सामान्य रूप से करने लगा । टीम के दूसरे डा . माहिम कोशरिया से जब मैंने कहा कि पेट पर दाग है तो वे बोले , ''दाग क्यों रहेगा ?''उन्होंने एक ट्यूब लिख दी जिसे लगाने के बाद छुरी का निशान भी गायब हो गया । २१ दिनों के बाद मैं स्वयं कार चलाकर केमो थेरेपी के लिए जाने लगा । बिना किसी फीस के इतने बड़े रोग की इतनी आसानी से चिकित्सा सरकारी डाक्टर कर सकते हैं ,शायद विश्वसनीय न लगे परन्तु पिछले ४ वर्षों से ६१ वर्ष की आयु में मेरी नई जिन्दगी दौड़ रही है ।
मुझे पेट की शिकायत युवावस्था से थी । ५० वर्ष की आयु के बाद कष्ट अधिक बढ़ गए । ५५ वर्ष की अवस्था में रक्त युक्त दस्तों की संख्या १५ - २० प्रतिदिन तक हो गई । बहुत कठिनाई से ज्ञात हुआ कि बड़ी आंत में कैंसर है और दूसरी अवस्था में पहुँच गया है । चिकित्सा के लिए मैं कैंसर अस्पताल गया । वहां मुझे जो कुछ समझाया गया और जो कुछ मेरी समझ में आया कि मै इलाज करवाऊं तो २ साल और जी सकता हूँ । मुझे यह भी बतलाया गया कि मल के लिए एक थैली पेट के साइड से निकाली जायेगी जो हमेशा के लिए भी रह सकती है . मैं इस अवस्था में जीने के लिए तैयार नहीं था । घर वालों के दबाव के कारण इलाज करवाना पड़ रहा था । इलाज के बाद शासन से प्रतिपूर्ति प्राप्त हो जाए ,इसलिए भोपाल के हमीदिया अस्पताल से आवेदन अग्रेषित करवाने गया । वहां सर्जरी विभाग में मुझे डा . अरविन्द राय मिले । उन्होंने जाँच रिपोर्ट देखी और मुस्कुराते हुए बोले - "इसमें अग्रेषित करवाने कि क्या बात है । आप आज अस्पताल में भर्ती हो जाइये । आपरेशन करके दो दिनों में आपको रोग मुक्त कर देंगें ।" मैंने उनसे थैली कि समस्या बताई । उन्होंने कहा कि आपको थैली नहीं लगेगी । मैं उनकी बातों से आश्वस्त हो गया । हमीदिया अस्पताल के कैंसर विभाग के अध्यक्ष डा . ओ. पी . सिंह के निर्देश पर पहले ३ सप्ताह रेडियो थेरेपी कि गई जब कि कैंसर अस्पताल में ६ सप्ताह की थेरेपी बताई गई थी । आपरेशन से पूर्व मैंने डा . राय से कहा कि मेरे तो छोटे आपरेशन के घाव भी कई दिनों में भर पाए थे । डा .राय ने कहा ,''हम किस लिए हैं .आप कोई चिंता न करें । '' ४-५ घंटे आपरेशन चला । ९ इंच बड़ी आंत काटकर अलग कि गई । ११ दिनों में मुझे घर भेज दिया गया । लौटते समय रास्ते में मैंने स्वयं फल ख़रीदे . अस्पताल में जूनियर डाक्टरों ने इतनी तत्परता से काम किया कि मुझे पता ही नहीं चला कि मै बीमार हूँ । मैं सभी काम सामान्य रूप से करने लगा । टीम के दूसरे डा . माहिम कोशरिया से जब मैंने कहा कि पेट पर दाग है तो वे बोले , ''दाग क्यों रहेगा ?''उन्होंने एक ट्यूब लिख दी जिसे लगाने के बाद छुरी का निशान भी गायब हो गया । २१ दिनों के बाद मैं स्वयं कार चलाकर केमो थेरेपी के लिए जाने लगा । बिना किसी फीस के इतने बड़े रोग की इतनी आसानी से चिकित्सा सरकारी डाक्टर कर सकते हैं ,शायद विश्वसनीय न लगे परन्तु पिछले ४ वर्षों से ६१ वर्ष की आयु में मेरी नई जिन्दगी दौड़ रही है ।
सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
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