मंगलवार, 4 मई 2010

नक्सली समस्या और समाधान

नक्सली समस्या पर देश में जिस प्रकार बहस हो रही है, उससे लगता है कि इस समस्या पर लोग गंभीर नहीं हैं या उन्हें इस के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है । मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह फरमाते हैं कि यह राज्यों का मामला है। इसमें केंद्रीय गृह मंत्री चिदम्बरम को परेशान नहीं होना चाहिए । इसके लिए वे चिदम्बरम को जिद्दी भी कहते हैं।अंततः चिदंबरम ने उनकी सलाह मान ली है ।वे इतनी जल्दी मैदान छोड़ देंगे , इसकी आशा नहीं थी। दिग्विजय सिंह इस समस्या को वर्तमान व्यवस्था का परिणाम मानते हैं जबकि वास्तविकता यह नहीं है । मध्य प्रदेश कि यह पुरानी नीति रही है कि जो कमाऊ पूत हों ,सिफारिशी हों , भले ही निकम्में हों उन्हें अच्छे और बड़े शहरों में रखो ,जहाँ वे चाहें और जो सरकारी दृष्टि में बुरे हों ,उन्हें बस्तर में पटक दो अपने आप अक्ल ठीक हो जायगी । बस्तर में जब पोस्टिंग ही निकम्मे या सताए हुए कर्मचारियों की होती रही हो तो विकास कि बात करना बेइमानी है । सरकार को इससे भी तसल्ली नहीं हुई। १९८४ में जाल बिछाया गया । सरकार ने घोषणा की कि जो कर्मचारी बस्तर जायेगा उसे ५०% अधिक डी ए दिया जायेगा । कुछ महीनों बाद वेतन पुनरीक्षण हुए । बस्तर के कर्मचारियों का डी ए नहीं बढ़ाया गया ,पुराना डी ए स्थिर कर दिया गया जो अनेक वर्षों तक उतना ही रहा जबकि प्रदेश के अन्य कर्मचारियों का डी ए बढ़ता गया .सताए हुए लोगों से बस्तर के कितने विकास की उम्मीद करेंगे ? छत्तीस गढ़ अलग हुआ तो राजनीती चली और परायों को वहां भेज दिया गया .वे सरकार का तो कुछ कर नहीं सकते थे जिसकी जैसी इच्छा हुई उसने वैसा काम किया । वहां पहली कांग्रेस सरकार ने भ्रष्टाचार के जो बीज बोए वे अब फल फूल रहे हैं । शिक्षा व्यवस्था चौपट कर दी गई ।खूबसूरत भाषण देकर युवकों को सब्ज बाग दिखाए गए और विकास के नाम पर जंगलों में छोड़ दिया गया । खदानों और जंगलों के ठेके अपने लोगों को दे दिए गए की जितना चाहो लूटो । बैलाडिला खदान का लौह अयस्क जापान को भेजा जाता था । उसकी धुलाई वहीँ की जाती थी । लौह युक्त पानी वहीँ बहा दिया जाता था जिससे वहां के लोगों को खूनी पेचिस और अन्य बीमारियाँ हो जाती थीं .लोग मरें या जियें किसी पर कोई असर नहीं पड़ता था. अब यदि सरकार के पास युवकों के लिए कोई काम नहीं है तो वे कुछ तो करेंगे ही । १९५५ में एक पिक्चर आई थी मदर इंडिया । उसमें दिखाया गया था कि एक साहूकार किसान का जम कर शोषण करता है .किसान का बेटा बड़ा होता है तो उसे एक लड़की समझाती है कि किस प्रकार उनकी सारी जमीन साहूकार ने हड़प ली और उनके मां- बाप को कितना सताया । लड़का डाकू बन जाता है और साहूकार की लड़की को उठा ले जाता है । लड़की को बचाने के लिए मां अपने बेटे को गोली मार देती है। नेताओं ने खुद भी साहूकारों के विरुद्ध खूब भाषण दे दे कर गरीबों के वोट बटोरे , सरकारें बनाईं ,जम कर लूटा। आज आप युवकों को काम नहीं दे सकते , कोई दिशा नहीं दिखा सकते तो उन्हें जो रास्ता दिखेगा ,उसी पर चलेंगे. राष्ट्रीय समस्याओं पर राजनीति नहीं करनी चाहिए । जनता पार्टी की सरकार को परेशान करने के लिए इंदिरा जी ने भिंडरावाले को आगे बढ़ाया था। उसका कितना दुखद अंत हुआ ? हमें इतिहास से कुछ तो सबक सीखना चाहिए ।
नक्सली समस्या उतनी आसान नहीं है जैसा लोग सोचते हैं और कुतर्क करते हैं। सब जानते है कि नक्सली एक राजनैतिक विचारधारा है जो माओ के सिद्धांत , 'आजादी बन्दूक की नली से मिलती है' , से निकली है , इसे वामपंथियों ने पाला - पोसा तथा पूर्व सरकारों की नीतियों ने सींचा है। वर्तमान सरकारें इसका संवर्धन कर रही हैं । आतंकवाद मिटाने के नाम पर व्यय होने वाले धन का कोई हिसाब - किताब नहीं होता है ।ऐसे कोष को कोई नेता - अफसर क्यों बंद करना चाहेगा ?इसी लिए गाँधी जी के देश में हिंसा बढती जा रही है । भय दिखाकर नक्सली ठेकेदारों से , माफिया से और जो पैसे दे सके , उससे धन लेते हैं, गरीबों से आदमी लेते हैं , नेताओं -अफसरों से समर्थन लेते है और अपना प्रभाव बढ़ाते जाते हैं । इस प्रकार इन्हें जीवन , शक्ति और प्रेरणा चीन से मिलती है तथा समर्थन और कार्य क्षेत्र भारत में मिलता है । उनके समर्थक सरकारों में जमे बैठे हैं ।लालू कहते हैं कि नक्सली आम आदमी को नहीं मारता है ,जो पुलिस कि मुखबिरी करेगा उसे क्यों नहीं मारेंगे !दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय में नक्सली विजय पर उत्सव मनाया जाता है सरकार कोई कार्यवाही नहीं करती है , इसी विश्वविद्यालय से निकले अनेक लोग आई ए एस हैं और उच्च पदों पर विरजमान हैं . उनके आतंरिक समर्थन से भी इंकार नहीं किया जा सकता है .दो वर्ष पूर्व एक वामपंथी सांसद बड़े गर्व से टी वी पर कह रहे थे कि बंगाल में भूमि वितरण बहुत अच्छा किया गया है ,इसलिए बंगाल में कोई नक्सली समस्या नहीं है नक्सलीओं की आज वामपंथियो से भले ही लड़ाई दिख रही हो ,परन्तु वामपंथी उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही करने के पक्ष में नहीं हैं . उनके विस्तार के यही कारण है ।कमजोर होने पर समझौता करना और शक्तिशाली होने पर युद्ध करना, नक्सलीओं की युद्ध- नीति का प्रमुख सिद्धांत है जब तक वे अंतिम विजय न प्राप्त कर लें । भारत की वर्तमान सरकारें धन संपत्ति बटोरने वाली योजनाएं बनाने में व्यस्त हैं । नक्सली समस्या पर विचार करने का समय किसके पास है ?यदि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर विदेशी मदद बंद करवा सकें ,शक्ति का समुचित प्रयोग कर सकें , लोगों में राष्ट्रीय भावना जाग्रत कर सकें , सामाजिक अध्ययन करके वनवासिओं की समस्याओं का उचित समाधान निकाल सकें तथा नेता गण नाकारा पलायन वाद छोड़ कर समस्या के समाधान की चुनौती साहस के साथ स्वीकार करें , तभी इस समस्या का अंत हो सकेगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. नक्सल समस्या पर एक संतुलित आलेख।नक्सल आंदोलन ने आज इतनी शक्ति अर्जित कर ली है कि वह देश की हुकुमत को चुनौति देने की स्थिति में है। दिग्विजय ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस को डुबोया अब अपने बेतुके और बेहूदे बयानों से केन्द्र सरकार को भ्रमित कर रहे हैं। यू पी के प्रभारी रहते दिग्विजय ने चुनाओं में कांग्रेस का भारी नुकसान किया। नक्सल आंदोलन बंदूक की गोली से सत्ता प्राप्ति के सिद्धांत पर अमल करता है तो हमारी नपुंसक केन्द्र सरकार वार्तालाप के जरिये समस्या का हल निकालने की फ़िजूल की नौटंकी क्यो कर रही है?इस समस्या को राष्ट्रीय समस्या मानते हुए सिर्फ़ केन्द्र ही इसका हल निकालने की योजना बना सकता है। इसे राज्यों की समस्या बताकर अपने फ़र्ज से बरी जुम्मे होने की बात ने केन्द्र की कायराना नीति एक बार फ़िर उजागर कर दी है।

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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