शनिवार, 22 मई 2010

जवानों एवं पुलिस का मनोबल न गिराएँ

पुलिस पर प्राम्भ से ही अनेक आरोप लगते रहे हैं । पुलिस गड़बड़ी भी करती है। पुलिस के संरक्षण में अपराध फलते - फूलते रहते हैं । फिर भी यह सबकी मजबूरी है कि कोई समस्या आने पर आदमी पुलिस के पास ही जाता है क्योंकि न्याय का मार्ग वही है । बहुत ख़राब कह लें परन्तु अभी भी उनमे बहुत लोग ईमानदार हैं। उन्हीं के कारण सामाजिक व्यवस्था टिकी हुई है। आजकल पुलिस और सुरक्षा बलों पर जिस प्रकार आक्रमण हो रहे हैं वह खेद का नहीं , दुःख और शर्म का विषय है। दुःख का विषय इसलिए कि विभिन्न हमलों में जहाँ अनेक जवान मारे गए हैं , उनसे सहानुभूति तो दूर रही , अनेक लोग , नेता , बुद्धिजीवी , मंत्री आदि उन्हें मारने वालों का ही पक्ष ले रहे हैं और शर्म कि बात इसलिए कि यह हरकत सत्तापक्ष के लोग ही कर रहे हैं । लालू यादव का जो बयान पढने के लिए मिला है कि नक्सली हमले में आम आदमी नहीं मरे हैं और जो पुलिस की मुखबिरी करेगा , उसे वे मारेंगे ही। इसका सीधा अर्थ है कि पुलिस कि मुखबिरी करना एक गंभीर अपराध और उसके लिए हत्या भी उचित है .यदि कोई पुलिस को जानकारी नहीं देगा , अपराधियों के विरुद्ध गवाही नहीं देगा , तो पुलिस न्यायालय में अपराध कैसे सिद्ध करेगी ? अपराध सिद्ध नहीं कर पायेगी तो अपराधी छूट जायेंगे। इससे अपराधियों कि संख्या में वृद्धि होती जाएगी और आज यही हो रहा है . या तो मुकदमों का फैसला ही नहीं हो पा रहा है और होता भी है तो अपराधी छूट जाते है। जिन्हें सुप्रीम कोर्ट फांसी देती है उसे भी ये वर्षों तक सजा नहीं देते हैं। दिल्ली में बटला मुठभेड़ में जिस आतंकी को पुलिस ने मार दिया था उसके घर सहानुभूति व्यक्त करने के लिए केंद्र की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने अपने महासचिव दिग्विजय सिंह को भेजा था। दिल्ली में उन्हीं की सरकार है जो कह रही है की मुठभेड़ सही है और आतंकी को मारा गया है। यदि केंद्र की कांग्रेस सरकार जानती है की दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने निर्दोष को मारा है और झूठ भी बोल रही है तो उसे बर्खास्त क्यों नहीं किया ? इन सब कारनामों का उद्देश्य है पुलिस का मनोबल गिराना की वह आतंकियों के विरुद्ध भविष्य में कोई कार्यवाही न करें अन्यथा वे हत्या के मामले में फँस सकते हैं ।
शुरू में लग रहा था की गृहमंत्री पी चिदम्बरम नक्सलीओं के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने वाले हैं परन्तु अनेक जवानों के शहीद होने के बाद उनके साथिओं ने हल्ला मचाया और वह जिस प्रकार पीछे हट गए ,उससे लगता है की इस अभियान का उद्देश्य जवानों का मनोबल तोडना था की भविष्य में कोई नक्सलीओं के विरुद्ध भूल कर भी कोई कार्यवाही न करे । भारत सरकार पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के लिए दिखावटी शोर मचाती रहती है । उसके स्वयं के सीमासुरक्षा बल को कनाडा ने बलात्कार और हत्या करने वाले संगठन के रूप में दर्ज कर रखा है और भारत सरकार ने इसका कोई विरोध भी नहीं किया । इसका भी स्पष्ट अर्थ है की भारत या तो इससे सहमत है या उसे जवानों की प्रतिष्ठा से कुछ लेना - देना नहीं है। यही कारण है कि इन जवानों द्वारा जब भी कश्मीर में कोई उग्रवादी मारा जाता है , सरकार के सहयोगी संगठन , नेता और मीडिया के लोग जवानों के विरुद्ध लामबंद होने लगते हैं । मध्य प्रदेश में अपराधों कि बढती हुई संख्या को देखते हुए गृह मंत्रालय ने अधिक थाने खोलने एवं पुलिस भरती करने तथा उन्हें आधुनिक बनाने के लिए बजट माँगा तो वित्त सचिव ने कहा कि पुलिस और थाने पहले से ही ज्यादा हैं । नए थानों कि क्या आवश्यकता है। संभव है उन्होंने यह धन की कमी के कारण कहा हो और सीधे - सीधे धनाभाव की बात कहने का साहस न कर पा रहे हों क्योंकि इससे सरकार की बदनामी होगी और उसका गुस्सा निकाल रहें हों पर इससे भी पुलिस का मनोबल तो कम होता है कि सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं देना चाहती है ।
मैं कानपुर में बी एस -सी में १९६७ में पढता था। मेरे मित्र के पिता एक अच्छे स्कूल में शिक्षक थे । वे बहुत अच्छे थे परन्तु थे मार्क्सवादी विचारधारा के । उनके विचार से सरकार जो पैसा गुंडे पालने में बर्बाद कर रही है, यदि उसका उपयोग विकास कार्यों पर किया जाये तो देश को बहुत लाभ होगा।उनके कम्युनिस्ट विचार से सेना , पुलिस आदि के जवान जनता के पैसों पर पलने वाले गुंडे हैं । वह कम से कम साफ़- साफ़ कहते तो थे । आज के नेता अपनी सुरक्षा तो उन्हीं जवानों से कराते हैं और जब उनके हितों कि बात आती है तो उनके विरुद्ध कार्य करते हैं। यदि नेता , मंत्री, तथाकथित बुद्धिजीवी , मीडिया, न्यायलय , मानवाधिकारियों आदि सबकी निगाह में ये दुष्ट और अनावश्यक हैं तो जवानों के सभी संगठन भंग कर देने चाहिए चाहे पुलिस हो या सेना अन्यथा सरकारें उन्हें पूर्ण सहयोग दें और जो व्यक्ति इनका मनोबल गिराने का थोडा भी प्रयास करे उनके विरुद्ध राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलाया जय ,वर्तमान समय कि यही मांग है।

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