मंगलवार, 18 जनवरी 2011

शिक्षा

शिक्षा की धज्जियाँ उड़ाती . प्र .सरकार

म. प्र. सरकार शिक्षा व्यवस्था की किस प्रकार धज्जियाँ उड़ा रही है इसका तजा उदाहरण ५वे सेमेस्टर के वे छात्र हैं जिन्हें पूर्व में परीक्षाओं में ए टी के टी होने के कारण ५वे सेमेस्टर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था तथा परीक्षा - फार्म भरने की अनुमति नहीं दी गई थी । उनके आन्दोलन के कारण अब उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई है । प्रथम प्रश्न यह उठता है की यदि उन्हें परीक्षा में बिठाना ही था तो किस आधार पर उन्हें कक्षा में प्रवेश से रोका गया ? जो छात्र पूर्व की परीक्षाएं नहीं उत्तीर्ण कर पाए थे ,वे कमजोर तो हैं ही . अब वे बिना पढ़े कैसे पास होंगे ?जिन्होंने कक्षा में प्रवेश ही नहीं लिया , उनकी ७५% उपस्थिति का क्या होगा ? किस आधार पर सरकार कुछ छात्रों के लिए ७५% और कुछ के लिए शून्य उपस्थित का नियम लागू कर रही है ? सरकार और विश्वविद्यालय तो शिक्षा को चौपट करने का संकल्प पूरा करने में जी-जान से जुटे हैं ,भारी कष्ट इस बात का है कि प्राध्यापकों से कहा गया है कि उनके आतंरिक मूल्यांकन तथा प्रायोगिक कार्यों के नंबर शीघ्र भेजें .जब प्राध्यापकों ने उन्हें पढ़ाया ही नहीं ,तो टेस्ट किस बात का लें , कैसे लें, कब लें ? सरकार कि मंशा साफ़ है .मंत्री- अफसर ही क्यों भ्रष्ट कहलाएँ ? यदि कोई सरकार का नौकर है ,वह प्राध्यापक ,शिक्षक हो या कोई अन्य , उसकी आत्मा का कचूमर निकाल दो ताकि वह भ्रष्टाचार के रंग में इस कदर रंग जाए कि इमानदारी से काम करने का विचार ही न कर सके .भ्रष्ट सरकार के पास भ्रष्ट विश्विद्यालय हैं , भ्रष्ट कुलपति और रजिस्ट्रार हैं, भ्रष्ट अधिकारी -कर्मचारी हैं । किसी को भी कह दो कि इन छात्रों की पास की मार्क शीट टाइप कर लाओ , वह तुरंत ले आएगा , उसके लिए इतना नाटक -नौटंकी करने की क्या आवश्यकता है ? सरकार एक काम सबसे अच्छा करती है की इस नौटंकी में वह कुलाधिपति , गवर्नर साहब को भी अच्छा सा रोल दे देती है ताकि वे भी खुश रहें । डर की बात तो है कि गवर्नर साहब कही नाराज हो गए और पूछ बैठे की छात्रों को बर्बाद क्यों कर रहे हो ,तो क्या कहेगी सरकार ?
स्कूली छात्रों की योग्यता के नमूने लिए गए । दूसरी के बच्चों को ठीक से गिनती भी नहीं आती है ,तीसरी के बच्चे जोड़- घटाओ नहीं जानते , पांचवी के छात्र गुणा - भाग नहीं कर सकते । सरकार की योजना बच्चों को इतना पढ़ाने- लिखाने की है कि देश - विदेश में कह सकें कि हम साक्षर हैं । बच्चों को ज्ञान इतना होना चाहिए कि जब मंत्री- अफसर अरबों के भ्रष्टाचार करें तो लोग समझ ही न सकें कि यह राशि कितनी बड़ी है । सरकार जो कर्जे ले रही है , वह कितना है , कल उसे कितना चुकाना होगा , उससे मंहगाई कितनी बढ़ेगी , जैसी किसी बात कि समझ जानता को नहीं होनी चाहिए । सब भ्रष्ट नेताओं -अफसरों ने छात्रों के हित का हवाला देते हुए नियम बना दिए कि किसी छात्र को कुछ न कहो ,वह पढ़े य न पढ़े , स्कूल आये या न आये , उसे फेल नहीं कर सकते । कल यही युवा बन कर शिक्षक बनेंगे तो क्या पढाएंगे ?किसी आफिस में काम करेंगे तो क्या काम करेंगे ?
जो कल मंत्री थे , यही तिकड़म करते थे , आज सड़कों पर चप्पलें फटकार रहें हैं । जो आज मंत्री हैं , मान कर बैठे हैं कि वे जिन्दी भर मंत्री बनकर देश को बर्बाद करते रहेंगे । यह सच है कि वे न्यायालय की दृष्टि में कोई अपराध नहीं कर रहे हैं क्योंकि अपराध करते होते तो उन्हें सजा हो जाती । वे तो पाप कर रहे हैं , उसकी सजा समाज कि पीडिओं को उसी प्रकार भुगतनी होगी जिस प्रकार देसी राजाओं -नवाबों की रंगीनियो तथा निकम्मेपन की सजा देश को गुलामी के रूप में झेलनी पड़ी थी । A

रविवार, 9 जनवरी 2011

जाम

रास्ता- जाम

जनता कहे सरकार से , तू क्या रोंधे मोय ,
हर दिन ऐसा आएगा , मैं रोंधूंगी तोय ।
मैं रोंधूंगी तोय , रास्ते जाम कराऊँ ,
चले न एको ट्रेन ,मैं पटरी पर सो जाऊं ।
सड़क का भ्रष्टाचार ,करन तू खोदे गड्ढे,
चलूँ मैं उलटी ओर, फंसे रहें बच्चे-बुद्धे ।। १ । ।
जाम करे सब काम

रास्ते करना जाम हमारा जन्म सिद्ध-अधिकार,
उलटी दिशा खड़ी करूँ , ट्रक,बस ,मोटर,कार ।
ट्रक,बस ,मोटर,कार, ट्रैक्टर नए -नए लाऊं ,
हो कृषकों की बात , ट्रालिया बीच अडाऊँ ।
विधान-सभा से लेकर , करूँ मैं रास्ते जाम।
जाम से होता नाम और जाम करे सब काम । । २ । ।

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

ईमानदार

ईमानदार

प्रहरी रहता ऊंघता , चोर करें निज काम ,
आफिस में कुछ लोग हैं ,जिनको काम हराम .
जिनको काम हराम , न कभी पैसे खावें ,
रखते धरम -ईमान ,जगत में नाम कमावें ।
मनमोहन की नीति, लगे सबको है न्यारी ,
रुपये से रहो दूर, करो जमकर मक्कारी ॥

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

म.प्र. के मुख्य सचिव की कार्य प्रणाली

.प्र. के मुख्य सचिव को गुस्सा क्यों आता है

म.प्र. के मुख्य सचिव श्री अवनी वैश्य ने प्रदेश के कलेक्टरों की विडिओ कांफेरेंस के माध्यम से क्लास ली । क्लास में कलेक्टरों को समझाइश दी गई कि मुख्य मंत्री की घोषणाओं को गंभीरता से लें. हुआ यह था कि मुख्यमंत्री खंडवा गए थे । उन्हें जो कार उपलब्ध करवाई गई ,उसके टायर फट गए । दूसरी गाड़ी मुख्यमंत्री का भार ढोने में नाकामयाब रही । अब इसमें नाराजगी कि कौन सी बात है । जो सरकार कि गाड़ी होगी वही न मिलेगी ! यदि यह गुस्सा मुख्य सचिव उस दिन दिखाते जिस दिन भोपाल के हमीदिया अस्पताल में कैदियों को लाने वाली पुलिस की गाड़ी ने ७ लोगों को कुचल दिया था तो मुख्य मंत्री जी को ऐसी गाड़ी न मिलती । गैस कांड में मरने वाले लोगों की क्षतिपूर्ति के लिए इसी सरकार के मंत्री भी १० लाख रूपये मुआवजे की बात करते हैं । पुलिस वैन से मरने वाले होनहार मेडिकल कालेज के छात्रों को २ लाख मुआवजा किस आधार पर दिया गया । यदि गाडी का बीमा नहीं था तो यह सरकार की गलती है । बीमा होता तो सबको उचित मुआवजा मिलता । बिना बीमा के खटारा गाड़ी चलाने के लिए मुख्य मंत्री या मुख्य सचिव झूठी ही अप्रसन्नता व्यक्त कर देते तो समझ में आता कि उन्हें प्रदेश की चिंता है । परन्तु प्रदेश की चिंता करने का अर्थ कर्ज लेकर बाँटने और वाह- वाही लूटने को मानने वाले नेता - अफसर जमीनी वास्तविकताओं से दूर स्वप्न लोक में विचरण करते प्रतीत हो रहें हैं ।
गुजरे जमाने की घटना है । म.प्र . में सकलेचा जी की सरकार में एक अति सिद्धांत वादी समाजवादी मंत्री थे .सतना से आगे निकलते ही कार ख़राब हो गई । साथ चल रहे अधिकारी ने आनन् - फानन में बिरला सीमेंट फैक्ट्री से गाड़ी बुलवा दी । मंत्री जी ने आपत्ति की कि समाजवादी मंत्री , मैं पूंजीपति कि गाडी में कैसे चढ़ सकता हूँ !वह साईकिल का ज़माना था । स्कूटर भी कम थे । अधिकारी जी ने कहा ," गाड़ी पूँजी पति कि नहीं होगी तो क्या झोपड़ी में मिलेगी ?" बेचारा मंत्री क्या करता ! उस समय राज्य स्तर के अधिकारी ने अपनी बात बेबाकी से कह दी थी , आज कौन कलेक्टर पंगा लेकर अपनी कलेक्ट्री गंवाने का जोखिम उठाना चाहेगा ?
प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा दिन हो जिस दिन किसी न किसी वर्ग के छात्र को परेशान न किया जाता हो । कभी सेमेस्टर वाले परेशान हो रहें हैं , कभी मेडिकल वालों को सताया जा रहा है , कभी आयुर्वेद - होमिओपैथी वाले हड़ताल कर रहे हैं , और बी एड जैसी परीक्षाओं का तो हाल ही मत पूछिए । जम कर लूट हो रही , सरे आम हो रही है ,वर्षों से हो रही है । इनका कोई माँ - बाप नहीं है । करबद्ध निवेदन है कि जवानी को यूं न सताइए । आए दिन कुलपतिओं का कि जांच- पड़ताल हो रही है । यह जांच- पड़ताल नियुक्ति के पहले क्यों नहीं की जाती है । वास्तविकता यह है कि तिकड़म से कुलपति नियुक्त किये जाते हैं । उनपर दबाव डालकर गलत काम करवाए जाते हैं ,जब वे फँस जाते हैं तो पालतू गाय की तरह सब उनका दोहन करने लगते हैं । दूध देना बंद तो खाना - पीना बंद और कुल से बाहर का रास्ता दिखा दिया । यह प्रयोग सबसे पहले क्लाइव ने बंगाल में मीरजाफर को नवाब बना कर शुरू किया था । नवाब बनाने के बदले उसने ,उसके अफसरों ने जम कर उपहार लिए और रोज कोई न कोई अफसर भेंट लेने आ जाता । जब वह नहीं दे पाया तो उसे निकाल बाहर किया , उसके दामाद कासिम को नवाब बना कर लूट -खसोट की । जब उसने आना -कानी की तो उसे हटाकर पुनः बूढ़े मीरजाफर को नवाब बना कर जबरन वसूली की और अंत में बंगाल की सत्ता हथिया ली । देश में कितने क्लाइव पैदा हो गए हैं , मौका मिले तो मुख्य सचिव जी उन्हें भी एक घुट्टी पिला दिया करें .
म.प्र शासन ने अनेक डाक्टरों को इसलिए बर्खास्त कर दिया कि उनकी डिग्री एम् आई सी से मान्यता प्राप्त नहीं है। आप उन कुल सचिवों , कुलपतिओं ,स्वस्थ्य विभाग के निदेशकों , आयुक्तों , प्रमुख सचिवों के विरुद्ध क्या कार्यवाही करने का साहस रखते हैं जिनके मार्ग दर्शन और प्रशासन में फर्जी डिग्रियां बांटी गईं । मान्यता की शर्तों को पूरा न करने के जिम्मेदार तो मुख्य सचिव और मुक्य मंत्री भी हैं । थोडा और साहस करिए न । यह सरकार तो राजधानी भोपाल के हमीदिया अस्पताल में हैण्ड ग्लब्स भी नहीं दे पा रही जिससे तत्परता पूर्वक युवा डाक्टरों द्वारा किये गए आपरेशन के समय उन्हें एड्स के संक्रमण का खतरा पैदा हो गया है । इन समस्याओं पर ध्यान देने वाला शायद कोई नहीं है . कलेक्टरों को आदेश भर देना ही प्रशासन नहीं होता है। बजट ,कर्मचारी तथा अन्य सुविधाएँ भी देनी होती हैं ।
डा ए डी खत्री

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010