शिक्षा की धज्जियाँ उड़ाती म. प्र .सरकार
म. प्र. सरकार शिक्षा व्यवस्था की किस प्रकार धज्जियाँ उड़ा रही है इसका तजा उदाहरण ५वे सेमेस्टर के वे छात्र हैं जिन्हें पूर्व में परीक्षाओं में ए टी के टी होने के कारण ५वे सेमेस्टर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था तथा परीक्षा - फार्म भरने की अनुमति नहीं दी गई थी । उनके आन्दोलन के कारण अब उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई है । प्रथम प्रश्न यह उठता है की यदि उन्हें परीक्षा में बिठाना ही था तो किस आधार पर उन्हें कक्षा में प्रवेश से रोका गया ? जो छात्र पूर्व की परीक्षाएं नहीं उत्तीर्ण कर पाए थे ,वे कमजोर तो हैं ही . अब वे बिना पढ़े कैसे पास होंगे ?जिन्होंने कक्षा में प्रवेश ही नहीं लिया , उनकी ७५% उपस्थिति का क्या होगा ? किस आधार पर सरकार कुछ छात्रों के लिए ७५% और कुछ के लिए शून्य उपस्थित का नियम लागू कर रही है ? सरकार और विश्वविद्यालय तो शिक्षा को चौपट करने का संकल्प पूरा करने में जी-जान से जुटे हैं ,भारी कष्ट इस बात का है कि प्राध्यापकों से कहा गया है कि उनके आतंरिक मूल्यांकन तथा प्रायोगिक कार्यों के नंबर शीघ्र भेजें .जब प्राध्यापकों ने उन्हें पढ़ाया ही नहीं ,तो टेस्ट किस बात का लें , कैसे लें, कब लें ? सरकार कि मंशा साफ़ है .मंत्री- अफसर ही क्यों भ्रष्ट कहलाएँ ? यदि कोई सरकार का नौकर है ,वह प्राध्यापक ,शिक्षक हो या कोई अन्य , उसकी आत्मा का कचूमर निकाल दो ताकि वह भ्रष्टाचार के रंग में इस कदर रंग जाए कि इमानदारी से काम करने का विचार ही न कर सके .भ्रष्ट सरकार के पास भ्रष्ट विश्विद्यालय हैं , भ्रष्ट कुलपति और रजिस्ट्रार हैं, भ्रष्ट अधिकारी -कर्मचारी हैं । किसी को भी कह दो कि इन छात्रों की पास की मार्क शीट टाइप कर लाओ , वह तुरंत ले आएगा , उसके लिए इतना नाटक -नौटंकी करने की क्या आवश्यकता है ? सरकार एक काम सबसे अच्छा करती है की इस नौटंकी में वह कुलाधिपति , गवर्नर साहब को भी अच्छा सा रोल दे देती है ताकि वे भी खुश रहें । डर की बात तो है कि गवर्नर साहब कही नाराज हो गए और पूछ बैठे की छात्रों को बर्बाद क्यों कर रहे हो ,तो क्या कहेगी सरकार ?
स्कूली छात्रों की योग्यता के नमूने लिए गए । दूसरी के बच्चों को ठीक से गिनती भी नहीं आती है ,तीसरी के बच्चे जोड़- घटाओ नहीं जानते , पांचवी के छात्र गुणा - भाग नहीं कर सकते । सरकार की योजना बच्चों को इतना पढ़ाने- लिखाने की है कि देश - विदेश में कह सकें कि हम साक्षर हैं । बच्चों को ज्ञान इतना होना चाहिए कि जब मंत्री- अफसर अरबों के भ्रष्टाचार करें तो लोग समझ ही न सकें कि यह राशि कितनी बड़ी है । सरकार जो कर्जे ले रही है , वह कितना है , कल उसे कितना चुकाना होगा , उससे मंहगाई कितनी बढ़ेगी , जैसी किसी बात कि समझ जानता को नहीं होनी चाहिए । सब भ्रष्ट नेताओं -अफसरों ने छात्रों के हित का हवाला देते हुए नियम बना दिए कि किसी छात्र को कुछ न कहो ,वह पढ़े य न पढ़े , स्कूल आये या न आये , उसे फेल नहीं कर सकते । कल यही युवा बन कर शिक्षक बनेंगे तो क्या पढाएंगे ?किसी आफिस में काम करेंगे तो क्या काम करेंगे ?
जो कल मंत्री थे , यही तिकड़म करते थे , आज सड़कों पर चप्पलें फटकार रहें हैं । जो आज मंत्री हैं , मान कर बैठे हैं कि वे जिन्दी भर मंत्री बनकर देश को बर्बाद करते रहेंगे । यह सच है कि वे न्यायालय की दृष्टि में कोई अपराध नहीं कर रहे हैं क्योंकि अपराध करते होते तो उन्हें सजा हो जाती । वे तो पाप कर रहे हैं , उसकी सजा समाज कि पीडिओं को उसी प्रकार भुगतनी होगी जिस प्रकार देसी राजाओं -नवाबों की रंगीनियो तथा निकम्मेपन की सजा देश को गुलामी के रूप में झेलनी पड़ी थी । A
म. प्र. सरकार शिक्षा व्यवस्था की किस प्रकार धज्जियाँ उड़ा रही है इसका तजा उदाहरण ५वे सेमेस्टर के वे छात्र हैं जिन्हें पूर्व में परीक्षाओं में ए टी के टी होने के कारण ५वे सेमेस्टर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था तथा परीक्षा - फार्म भरने की अनुमति नहीं दी गई थी । उनके आन्दोलन के कारण अब उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई है । प्रथम प्रश्न यह उठता है की यदि उन्हें परीक्षा में बिठाना ही था तो किस आधार पर उन्हें कक्षा में प्रवेश से रोका गया ? जो छात्र पूर्व की परीक्षाएं नहीं उत्तीर्ण कर पाए थे ,वे कमजोर तो हैं ही . अब वे बिना पढ़े कैसे पास होंगे ?जिन्होंने कक्षा में प्रवेश ही नहीं लिया , उनकी ७५% उपस्थिति का क्या होगा ? किस आधार पर सरकार कुछ छात्रों के लिए ७५% और कुछ के लिए शून्य उपस्थित का नियम लागू कर रही है ? सरकार और विश्वविद्यालय तो शिक्षा को चौपट करने का संकल्प पूरा करने में जी-जान से जुटे हैं ,भारी कष्ट इस बात का है कि प्राध्यापकों से कहा गया है कि उनके आतंरिक मूल्यांकन तथा प्रायोगिक कार्यों के नंबर शीघ्र भेजें .जब प्राध्यापकों ने उन्हें पढ़ाया ही नहीं ,तो टेस्ट किस बात का लें , कैसे लें, कब लें ? सरकार कि मंशा साफ़ है .मंत्री- अफसर ही क्यों भ्रष्ट कहलाएँ ? यदि कोई सरकार का नौकर है ,वह प्राध्यापक ,शिक्षक हो या कोई अन्य , उसकी आत्मा का कचूमर निकाल दो ताकि वह भ्रष्टाचार के रंग में इस कदर रंग जाए कि इमानदारी से काम करने का विचार ही न कर सके .भ्रष्ट सरकार के पास भ्रष्ट विश्विद्यालय हैं , भ्रष्ट कुलपति और रजिस्ट्रार हैं, भ्रष्ट अधिकारी -कर्मचारी हैं । किसी को भी कह दो कि इन छात्रों की पास की मार्क शीट टाइप कर लाओ , वह तुरंत ले आएगा , उसके लिए इतना नाटक -नौटंकी करने की क्या आवश्यकता है ? सरकार एक काम सबसे अच्छा करती है की इस नौटंकी में वह कुलाधिपति , गवर्नर साहब को भी अच्छा सा रोल दे देती है ताकि वे भी खुश रहें । डर की बात तो है कि गवर्नर साहब कही नाराज हो गए और पूछ बैठे की छात्रों को बर्बाद क्यों कर रहे हो ,तो क्या कहेगी सरकार ?
स्कूली छात्रों की योग्यता के नमूने लिए गए । दूसरी के बच्चों को ठीक से गिनती भी नहीं आती है ,तीसरी के बच्चे जोड़- घटाओ नहीं जानते , पांचवी के छात्र गुणा - भाग नहीं कर सकते । सरकार की योजना बच्चों को इतना पढ़ाने- लिखाने की है कि देश - विदेश में कह सकें कि हम साक्षर हैं । बच्चों को ज्ञान इतना होना चाहिए कि जब मंत्री- अफसर अरबों के भ्रष्टाचार करें तो लोग समझ ही न सकें कि यह राशि कितनी बड़ी है । सरकार जो कर्जे ले रही है , वह कितना है , कल उसे कितना चुकाना होगा , उससे मंहगाई कितनी बढ़ेगी , जैसी किसी बात कि समझ जानता को नहीं होनी चाहिए । सब भ्रष्ट नेताओं -अफसरों ने छात्रों के हित का हवाला देते हुए नियम बना दिए कि किसी छात्र को कुछ न कहो ,वह पढ़े य न पढ़े , स्कूल आये या न आये , उसे फेल नहीं कर सकते । कल यही युवा बन कर शिक्षक बनेंगे तो क्या पढाएंगे ?किसी आफिस में काम करेंगे तो क्या काम करेंगे ?
जो कल मंत्री थे , यही तिकड़म करते थे , आज सड़कों पर चप्पलें फटकार रहें हैं । जो आज मंत्री हैं , मान कर बैठे हैं कि वे जिन्दी भर मंत्री बनकर देश को बर्बाद करते रहेंगे । यह सच है कि वे न्यायालय की दृष्टि में कोई अपराध नहीं कर रहे हैं क्योंकि अपराध करते होते तो उन्हें सजा हो जाती । वे तो पाप कर रहे हैं , उसकी सजा समाज कि पीडिओं को उसी प्रकार भुगतनी होगी जिस प्रकार देसी राजाओं -नवाबों की रंगीनियो तथा निकम्मेपन की सजा देश को गुलामी के रूप में झेलनी पड़ी थी । A
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