रविवार, 28 अगस्त 2011

परीक्षा में विलम्ब के लिए विश्वविद्यालय उत्तरदायी

परीक्षा में विलम्ब के लिए विश्वविद्यालय उत्तरदायी
परीक्षा में विलम्ब और लाख से अधिक छात्रों का वर्ष बर्बाद करने के लिए विश्विद्यालय उत्तरदायी हैं .छात्रों को इसकी क्षति पूर्ति करने के स्थान पर प्राध्यापकों के सर पर इसका दोष मढ़ना अति निंदनीय है . वास्तविक तथ्यों की जानकारी ज्ञात किये बिना सरकार द्वारा सेमेस्टर परीक्षाओं को अत्यावश्यक सेवा घोषित करने से क्या लाभ होगा ?परीक्षा कार्य में पेपर सेटिंग और मूल्यांकन भ्रष्टाचार और कमाई के बड़े स्रोत हैं और अनेक वर्षों से उस पर काकस का कब्ज़ा बना हुआ है . परीक्षा कार्यों से सम्बद्ध अधिकारी अपने चहेतों को अच्छे पेपर देते हैं . अच्छे अर्थात जिसमें छात्र संख्या अधिक हो . ईमानदार वरिष्ठ प्राध्यापकों को ऐसे पेपर देंगे जिनमे छात्र कम हों या स्नातकोत्तर के वे प्रश्नपत्र जो उन्होंने पढ़ाये ही न हों . इसमें पहचान और तिकड़म का अधिक जोर चलता है . जिनकी बार- बार उपेक्षा की जाएगी , वे चुप रह जाने के अतिरिक्त क्या करें ? किससे शिकायत करें ? कौन सुनने वाला है ? क्या सरकार ने कभी किसी प्राध्यापक से पूछा है कि उसने ऐसा क्यों किया ? विश्विद्यालय ने चुगली की और शासन ने मान ली .ऐसे सरकारी अफसरों को क्या कहेंगे ?
जहाँ तक कापियों के मूल्यांकन का प्रश्न है , उन्ही को बुलाया जाता है जो गैंग की इच्छानुसार कापियां जांचें . मैंने अंतिम बार दो दिन मूल्यांकन शायद २००३ या २००४ में किया था . उस समय मैं भोपाल के उत्कृष्टता संस्थान में रसायन शास्त्र का विभागाध्यक्ष था .मैं अपनी कक्षाएं लेने के बाद कापी जांचने पहुंचा या शायद वह छुट्टी का दिन था . मुझे कहा गया कि मैं अपनी संस्थान की संचालक से लिखित में अनुमति लेकर आऊँ . जब मैंने संचालक से अनुमति की बात की तो उनका कहना था की चूंकि मै अपना कार्य पूरा करके जा रहा हूँ तो अनुमति की आवश्यकता नहीं है . जिस ने मुझे आदेश लाने के लिए कहा था, वह मुझे अच्छी तरह जनता है . शायद मैं अच्छा परीक्षक नहीं माना जाता था . उसके कुछ वर्ष पूर्व जब मुझे केन्द्रीय मूल्यांकन में कापियां दी गईं तो उसमें कुछ कापियों के पन्ने मुड़े हुए थे और कहा गया था की उन को उत्कृष्ट नंबर देने हैं. पास होने तक नंबर देना तो समझ में आता है परन्तु मनमाने ढंग से नंबर देना मेरे बस की बात नहीं थी . ऐसे शिक्षक वहां नहीं चाहिए जो वहां के क्लर्कों की आज्ञा का उल्लंघन करें .विश्विद्यालय में एक बार मूल्यांकन कार्य का प्रभारी एक रीडर को बनाया गया . वह बड़ी ईमानदारी से काम कर रहे थे . एक अपिरिचित शिक्षक को देख कर उससे पूछा तो उसने बताया उरई (उ. प्र.) से आया है . उम्र देख कर उससे कुछ और नहीं पूछा . अगले दिन देखा दो सुन्दर युवा लड़कियां कापी जांच रही हैं . उनसे पूछा कि कहाँ से आई हो . उन्होंने कहा कि उरई से . बिना अनुमति के मजे से कापिया जाँच रही हैं . रीडर ने उन्हें निकाल दिया . अगले साल किसी रीडर- प्रोफ़ेसर को मूल्यांकन का प्रमुख नहीं बनाया गया .जिस शिक्षक का पेपर होता है , कापी जांचने में उसे भनक भी नहीं लगने दी जाती है यदि वह अच्छा और स्वाभिमानी हो . परीक्षा -माफिया ने वरिष्ठ और अच्छे शिक्षकों को अपमानित करके परीक्षा से दूर किया है . कितने किस्से कहूं ? आज ये विश्विद्यालय के अधिकारी शिक्षकों को बदनाम कर रहे हैं और शासन उनकी बात सुन भी रहा है , यही म. प्र. का दुर्भाग्य है . अपने सगे अधिकारियों का इतना अपमान शायद ही कोई अन्य विभाग करने की बात भी सोचता हो .
रही बात कम मूल्यांकन की दर की . केन्द्रीय मूल्यांकन में तो अंतिम दिन भुगतान कर दिया जाता है .परन्तु घर से कापिया जाँच कर भेजने या अन्य कार्यों के लिए बिना जुगाड़ के विश्विद्यालय कम दर वाले पैसे भी नहीं देता है . आठ वर्ष पूर्व तक का मेरा अपना यह अनुभव रहा है कि परीक्षा विभाग से बिल पर हस्ताक्षर करवाकर , उसे अपने सामने एकाउंट सेक्शन में रजिस्टर पर चढ़वाकर , उस रजिस्टर को वित्त अधिकारी के पास ले जाकर उससे हस्ताक्षर करवाकर ,उप कुलसचिव/सहायक कुलसचिव के सामने बैठकर चेक पर हस्ताक्षर करवाकर तो राशि प्राप्त कि जा सकती है या फिर आपके लिए यह कार्य कोई दूसरा व्यक्ति करदे या फिर कोई जुगाड़ हो अन्यथा आपकी किस्मत है की पैसे मिल जाएँ . विश्विद्यालय के स्थान के बाहर के लोग यह सब कैसे कर सकते हैं ? कापियां किसके लिए जांचें? मैंने अप्रेल २००९ में बरकतुल्लाह विश्विद्यालय में पाठ्यक्रम समिति की बैठक में भाग लिया था . आज तक यात्रा भत्ता नहीं मिला जो शायद ५० रूपये था .प्रश्न पत्र बनाने से लेकर मूल्यांकन कार्यों तक अधिकांश समय वरिष्ठों की जम कर उपेक्षा की गई है . प्रायोगिक परीक्षाओं में तो मुफ्त में खूब नंबर देने की पृथा बना दी गई है . निजी महाविद्यालयों में तो ऐसे शिक्षक चाहिए जो लैब के बाहर ही नंबर दे कर चले जांयें . निजी महा विद्यालयों में लिखित परीक्षा केंद्र रखे ही नहीं जाते हैं . सरकारी कालेज अतिथियों के भरोसे चल रहे हैं . कम स्टाफ , सेमेस्टर की परीक्षाएं और परीक्षाएं , यह प्राचार्य ही जानते हैं कि वे कैसे काम कर पा रहे हैं .विश्विद्यालय के ढेर सारे पेपर ,उनके मन पसंद थोड़े से शिक्षक , जो अपना वार्षिक मूल्यांकन राशि का कोटा शीघ्र पूरा कर लेते हैं , उससे अधिक मूल्यांकन कार्य उन्हें मुफ्त में करना होगा . ऐसा कौन करेगा ?
म.प्र. उच्च शिक्षा विभाग के नए आयुक्त और प्रमुख सचिव अपने विभाग के बारे में क्या जानते हैं ? किसी से मिलना उन्हें पसंद नहीं है . यथार्थ जाने बिना यदि कुछ निर्णय लेंगे तो उससे व्यवस्था और बर्बाद ही होगी .

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