म.प्र. के मुख्य सचिव को गुस्सा क्यों आता है म.प्र. के मुख्य सचिव श्री अवनी वैश्य ने प्रदेश के कलेक्टरों की विडिओ कांफेरेंस के माध्यम से क्लास ली । क्लास में कलेक्टरों को समझाइश दी गई कि मुख्य मंत्री की घोषणाओं को गंभीरता से लें. हुआ यह था कि मुख्यमंत्री खंडवा गए थे । उन्हें जो कार उपलब्ध करवाई गई ,उसके टायर फट गए । दूसरी गाड़ी मुख्यमंत्री का भार ढोने में नाकामयाब रही । अब इसमें नाराजगी कि कौन सी बात है । जो सरकार कि गाड़ी होगी वही न मिलेगी ! यदि यह गुस्सा मुख्य सचिव उस दिन दिखाते जिस दिन भोपाल के हमीदिया अस्पताल में कैदियों को लाने वाली पुलिस की गाड़ी ने ७ लोगों को कुचल दिया था तो मुख्य मंत्री जी को ऐसी गाड़ी न मिलती । गैस कांड में मरने वाले लोगों की क्षतिपूर्ति के लिए इसी सरकार के मंत्री भी १० लाख रूपये मुआवजे की बात करते हैं । पुलिस वैन से मरने वाले होनहार मेडिकल कालेज के छात्रों को २ लाख मुआवजा किस आधार पर दिया गया । यदि गाडी का बीमा नहीं था तो यह सरकार की गलती है । बीमा होता तो सबको उचित मुआवजा मिलता । बिना बीमा के खटारा गाड़ी चलाने के लिए मुख्य मंत्री या मुख्य सचिव झूठी ही अप्रसन्नता व्यक्त कर देते तो समझ में आता कि उन्हें प्रदेश की चिंता है । परन्तु प्रदेश की चिंता करने का अर्थ कर्ज लेकर बाँटने और वाह- वाही लूटने को मानने वाले नेता - अफसर जमीनी वास्तविकताओं से दूर स्वप्न लोक में विचरण करते प्रतीत हो रहें हैं ।
गुजरे जमाने की घटना है । म.प्र . में सकलेचा जी की सरकार में एक अति सिद्धांत वादी समाजवादी मंत्री थे .सतना से आगे निकलते ही कार ख़राब हो गई । साथ चल रहे अधिकारी ने आनन् - फानन में बिरला सीमेंट फैक्ट्री से गाड़ी बुलवा दी । मंत्री जी ने आपत्ति की कि समाजवादी मंत्री , मैं पूंजीपति कि गाडी में कैसे चढ़ सकता हूँ !वह साईकिल का ज़माना था । स्कूटर भी कम थे । अधिकारी जी ने कहा ," गाड़ी पूँजी पति कि नहीं होगी तो क्या झोपड़ी में मिलेगी ?" बेचारा मंत्री क्या करता ! उस समय राज्य स्तर के अधिकारी ने अपनी बात बेबाकी से कह दी थी , आज कौन कलेक्टर पंगा लेकर अपनी कलेक्ट्री गंवाने का जोखिम उठाना चाहेगा ?
प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा दिन हो जिस दिन किसी न किसी वर्ग के छात्र को परेशान न किया जाता हो । कभी सेमेस्टर वाले परेशान हो रहें हैं , कभी मेडिकल वालों को सताया जा रहा है , कभी आयुर्वेद - होमिओपैथी वाले हड़ताल कर रहे हैं , और बी एड जैसी परीक्षाओं का तो हाल ही मत पूछिए । जम कर लूट हो रही , सरे आम हो रही है ,वर्षों से हो रही है । इनका कोई माँ - बाप नहीं है । करबद्ध निवेदन है कि जवानी को यूं न सताइए । आए दिन कुलपतिओं का कि जांच- पड़ताल हो रही है । यह जांच- पड़ताल नियुक्ति के पहले क्यों नहीं की जाती है । वास्तविकता यह है कि तिकड़म से कुलपति नियुक्त किये जाते हैं । उनपर दबाव डालकर गलत काम करवाए जाते हैं ,जब वे फँस जाते हैं तो पालतू गाय की तरह सब उनका दोहन करने लगते हैं । दूध देना बंद तो खाना - पीना बंद और कुल से बाहर का रास्ता दिखा दिया । यह प्रयोग सबसे पहले क्लाइव ने बंगाल में मीरजाफर को नवाब बना कर शुरू किया था । नवाब बनाने के बदले उसने ,उसके अफसरों ने जम कर उपहार लिए और रोज कोई न कोई अफसर भेंट लेने आ जाता । जब वह नहीं दे पाया तो उसे निकाल बाहर किया , उसके दामाद कासिम को नवाब बना कर लूट -खसोट की । जब उसने आना -कानी की तो उसे हटाकर पुनः बूढ़े मीरजाफर को नवाब बना कर जबरन वसूली की और अंत में बंगाल की सत्ता हथिया ली । देश में कितने क्लाइव पैदा हो गए हैं , मौका मिले तो मुख्य सचिव जी उन्हें भी एक घुट्टी पिला दिया करें .
म.प्र शासन ने अनेक डाक्टरों को इसलिए बर्खास्त कर दिया कि उनकी डिग्री एम् आई सी से मान्यता प्राप्त नहीं है। आप उन कुल सचिवों , कुलपतिओं ,स्वस्थ्य विभाग के निदेशकों , आयुक्तों , प्रमुख सचिवों के विरुद्ध क्या कार्यवाही करने का साहस रखते हैं जिनके मार्ग दर्शन और प्रशासन में फर्जी डिग्रियां बांटी गईं । मान्यता की शर्तों को पूरा न करने के जिम्मेदार तो मुख्य सचिव और मुक्य मंत्री भी हैं । थोडा और साहस करिए न । यह सरकार तो राजधानी भोपाल के हमीदिया अस्पताल में हैण्ड ग्लब्स भी नहीं दे पा रही जिससे तत्परता पूर्वक युवा डाक्टरों द्वारा किये गए आपरेशन के समय उन्हें एड्स के संक्रमण का खतरा पैदा हो गया है । इन समस्याओं पर ध्यान देने वाला शायद कोई नहीं है . कलेक्टरों को आदेश भर देना ही प्रशासन नहीं होता है। बजट ,कर्मचारी तथा अन्य सुविधाएँ भी देनी होती हैं ।
डा ए डी खत्री