रविवार, 25 अप्रैल 2010

सांसदों के वेतन भत्ते

सांसद राजीव शुक्ला का लेख 'सांसदों के वेतन भत्ते ' पढ़ा । वेतन बढ़ाने के लिए इतनी सफाई देने की क्या जरुरत है ? यही एक ऐसा काम है जिसमें सब सांसद एक मत हैं .सचिव से एक रुपया ज्यादा मिले । यह जलने वाली कौन सी थ्योरी है । सचिव तो सिर्फ काम करता है, सांसदों को तो संसद में लड़ना- झगड़ना भी पड़ता है । उन्हें तो बहुत अधिक वेतन मिलना चाहिए। शुक्ला जी ने अनेक खर्चे गिनवाए, यह तो गिना ही नहीं की चुनाव लड़ने में ३ से ५-१० करोड़ रूपए भी खर्च होते हैं । अगर सांसद बेचारे इतने तंग हाल हैं तो देश सेवा के और रास्ते भी हैं। सांसद बनना ही जरुरी क्यों है ? शुक्ला जी ने विकसित देशों के सांसदों से भत्तों की तुलना की है। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या वहां भी ४० करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं ? क्या वहां भी लोगों को बूढ़ा होने तक दैनिक वेतन भोगी के रूप में रखा जाता है ? क्या वहां अपढ़ लोग भी, माफिया भी सांसद चुने जा सकतेहैं ? क्या वहां सांसद चर्चा के समय अपने - अपने व्यवसाय करने चले जाते हैं और संसद खाली रहती है ? शुक्ला जी , आप तो विद्वान हैं । तुलना करें तो पूरी तरह से करें ।

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