यात्रा संस्मरण :
बोधगया
हमने अप्रेल २०१३ में बिहार की यात्रा की
जिसका विवरण आगामी अंकों में प्रकाशित किया जायगा . इस अंक में हम केवल बोधगया की
चर्चा करेंगे .गया पटना के दक्षिण में १०० किमी दूरी पर कोलकाता – दिल्ली मार्ग पर
जी टी रोड पर फाल्गू नदी के तट पर स्थित है. फाल्गू नदी के तट पर ही गया से १५
किमी दूर बोधगया है . यह वह स्थान है जहां २५०० वर्ष पूर्व शाक्य राजकुमार सिद्धार्थ
को वर्षों की तपस्या के पश्चात ज्ञान प्राप्त हुआ था और वे बुद्ध बन गए थे .अतः यह
बौद्ध मतावलंबियों के लिए पवित्रतम तीर्थ स्थान है जहां विश्व के अनेक देशों से बौद्ध एवं अन्य लोग शान्ति
प्राप्त करने आते हैं .
जिस पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान् बुद्ध को जीवन
के सत्य के दर्शन हुए थे , वर्तमान पीपल का विशाल वृक्ष उसकी पांचवीं पीढ़ी का माना जाता है . वृक्ष के नीचे पूर्व कि ओर मुंह
करके बुद्ध समाधिस्थ हुए थे , सम्राट अशोक ने ईसा से तीसरी शती पूर्व ,वहां पर एक
स्तूप बनवा दिया था . लगभग ३०० वर्षों बाद कुषाण काल में उसका पुनुरुद्धार करवाया
गया .पांचवीं शती में कुमारगुप्त के काल
में इसका जीर्णोद्धार श्रीलंका के राजा ने करवाया था . कालान्तर में यह विस्मृत सा
हो गया. इसकी वर्तमान खोज १८८३ में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी .उसने
आसपास के क्षेत्र की खुदाई करवाकर इसकी पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की.
उसी
पुराने स्थान पर वर्तमान में बोधिगया का भव्य मंदिर स्थित है . उसके पीछे विशाल
पीपल का वृक्ष ,जो बोधिवृक्ष के नाम से
विख्यात है , आज भी आकर्षण का प्रबल केंद्र है . मंदिर का आधार ४८ वर्ग फीट तथा
कुल ऊंचाई १७० फीट है .मंदिर के अन्दर काले पत्थर की बुद्ध भगवान् की विशाल
प्रतिमा शोभायमान हो रही है . इस परिसर में अनेक स्तूप भी बने हुए हैं . मंदिर बाहर
से भी कलापूर्ण एवं सुन्दर है .कहा जाता है कि मंदिर के अन्दर लगी हुई रेलिंग
ईसापूर्व प्रथम सदी की है की है.
बोधगया एक धर्म ग्राम है जहां आकर
मन श्रद्धा से भर उठता है तथा शान्ति का अनुभव करता है . यहाँ पर अनेक बौद्ध देशों
के मंदिर हैं जो अपनी भव्य वास्तु शैली एवं मूर्तिकला से श्रद्धालुओं के मन को
आनंद से भर देते हैं .यहाँ पर चीन , जापान , भूटान . तिब्बत .थाईलैंड आल इण्डिया
भिक्षु समाज , दायजोकियो आदि मंदिर आकर्षण के प्रबल केंद्र हैं . बुद्ध कि खुली
विशाल प्रस्तर प्रतिमाएं देखकर ऐसा लगता है कि आप साक्षात भगवान् के सम्मुख खड़े
हों .
बोधिमंदिर के परिसर में आदि शंकराचार्य कि समाधि भी है. जानकारी के अभाव
एवं यात्रा में विलम्ब के कारण हमारे पास समय कम था . हमने गया से एक ऑटो कर लिया
था . शाम के ६ बज चुके थे अतः हम विभिन्न मंदिरों में बैठकर ध्यान नहीं कर सके
परन्तु हमने दर्शन अधिकाँश मंदिरों में कर
लिए थे .बौद्धगया में कम से कम एक पूरा दिन तो भ्रमण करना ही चाहिए ताकि विभिन्न
देशों द्वारा निर्मित मंदिरों के कला सौन्दर्य को अच्छी प्रकार देख सकें तथा
भगवान् बुद्ध का सानिद्ध्य प्राप्त कर सकें .
सुप्रीत खत्री