सोमवार, 15 अप्रैल 2013

बोधगया


यात्रा संस्मरण :
                               बोधगया
हमने अप्रेल २०१३ में बिहार की यात्रा की जिसका विवरण आगामी अंकों में प्रकाशित किया जायगा . इस अंक में हम केवल बोधगया की चर्चा करेंगे .गया पटना के दक्षिण में १०० किमी दूरी पर कोलकाता – दिल्ली मार्ग पर जी टी रोड पर फाल्गू नदी के तट पर स्थित है. फाल्गू नदी के तट पर ही गया से १५ किमी दूर बोधगया है . यह वह स्थान है जहां २५०० वर्ष पूर्व शाक्य राजकुमार सिद्धार्थ को वर्षों की तपस्या के पश्चात ज्ञान प्राप्त हुआ था और वे बुद्ध बन गए थे .अतः यह बौद्ध मतावलंबियों के लिए पवित्रतम तीर्थ स्थान है जहां विश्व के  अनेक देशों से बौद्ध एवं अन्य लोग शान्ति प्राप्त करने आते हैं .
  जिस पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान् बुद्ध को जीवन के सत्य के दर्शन हुए थे , वर्तमान पीपल का विशाल वृक्ष  उसकी पांचवीं पीढ़ी का  माना जाता है . वृक्ष के नीचे पूर्व कि ओर मुंह करके बुद्ध समाधिस्थ हुए थे , सम्राट अशोक ने ईसा से तीसरी शती पूर्व ,वहां पर एक स्तूप बनवा दिया था . लगभग ३०० वर्षों बाद कुषाण काल में उसका पुनुरुद्धार करवाया गया  .पांचवीं शती में कुमारगुप्त के काल में इसका जीर्णोद्धार श्रीलंका के राजा ने करवाया था . कालान्तर में यह विस्मृत सा हो गया. इसकी  वर्तमान खोज  १८८३ में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी .उसने आसपास के क्षेत्र की खुदाई करवाकर इसकी पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की.
  उसी पुराने स्थान पर वर्तमान में बोधिगया का भव्य मंदिर स्थित है . उसके पीछे विशाल पीपल का वृक्ष ,जो  बोधिवृक्ष के नाम से विख्यात है , आज भी आकर्षण का प्रबल केंद्र है . मंदिर का आधार ४८ वर्ग फीट तथा कुल ऊंचाई १७० फीट है .मंदिर के अन्दर काले पत्थर की बुद्ध भगवान् की विशाल प्रतिमा शोभायमान हो रही है . इस परिसर में अनेक स्तूप भी बने हुए हैं . मंदिर बाहर से भी कलापूर्ण एवं सुन्दर है .कहा जाता है कि मंदिर के अन्दर लगी हुई रेलिंग ईसापूर्व प्रथम सदी की है की  है.
    बोधगया एक धर्म ग्राम है  जहां आकर मन श्रद्धा से भर उठता है तथा शान्ति का अनुभव करता है . यहाँ पर अनेक बौद्ध देशों के मंदिर हैं जो अपनी भव्य वास्तु शैली एवं मूर्तिकला से श्रद्धालुओं के मन को आनंद से भर देते हैं .यहाँ पर चीन , जापान , भूटान . तिब्बत .थाईलैंड आल इण्डिया भिक्षु समाज , दायजोकियो आदि मंदिर आकर्षण के प्रबल केंद्र हैं . बुद्ध कि खुली विशाल प्रस्तर प्रतिमाएं देखकर ऐसा लगता है कि आप साक्षात भगवान् के सम्मुख खड़े हों .
    बोधिमंदिर के परिसर में आदि शंकराचार्य कि समाधि भी है. जानकारी के अभाव एवं यात्रा में विलम्ब के कारण हमारे पास समय कम था . हमने गया से एक ऑटो कर लिया था . शाम के ६ बज चुके थे अतः हम विभिन्न मंदिरों में बैठकर ध्यान नहीं कर सके परन्तु हमने दर्शन अधिकाँश मंदिरों में  कर लिए थे .बौद्धगया में कम से कम एक पूरा दिन तो भ्रमण करना ही चाहिए ताकि विभिन्न देशों द्वारा निर्मित मंदिरों के कला सौन्दर्य को अच्छी प्रकार देख सकें तथा भगवान् बुद्ध का सानिद्ध्य प्राप्त कर सकें .         
                                             सुप्रीत खत्री

रविवार, 14 अप्रैल 2013

नौकर देश का निर्माण नहीं कर सकते

रजत पथ के वर्ष ४ अंक ३ ( दिस-जन २०१३ ) के अंक में डा. ए.डी .ने भारत के नौकर शाहों कि मानसिक प्रवृत्ति एवं क्षमता का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला था कि ये देश का निर्माण नहीं कर सकते हैं .

३५ से ४० वर्ष तक नौकरी करने के बाद वे पुनः नेताओं के सामने बेरोजगार बनकर खड़े होते है कि उन्हें पुनः कहीं पर शाही नौकर बना दिया जाय ताकि वे पद , मान और धन का जीवन भर आनंद उठाते रहें . वित्तीय वर्ष २०१२-१३ समाप्त होते -होते झारखंड में यह तथ्य पूरी तरह से सत्य सिद्ध हो गया . राज्य में वर्ष २०१२-१३ के लिए योजना आकार १६३०० करोड़ रुपये का था जिसमें से वे एक तिहाई राशि व्यय ही नहीं कर पाए.३१ मार्च , रविवार के दिन ही लगभग १५०० करोड़ रुपये का आहरण किया गया .यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र ने योजना व्यय के लिए कम धन दिया जिससे लगभग ३००० करोड़ रुपये कम प्राप्त हुए . क्या यह आश्चर्य नहीं है कि जहां अन्य राज्य व्यय के लिए अधिक धन की मांग करते रहते हैं , झारखंड जैसा पिछड़ा राज्य स्वीकृत व्यय का एक तिहाई भाग खर्च ही नहीं कर पाता है. १८ जनवरी २०१३ से वहां पर राष्ट्रपति शासन है अर्थात सारा कार्य मुख्य सचिव , प्रमुख सचिव, आयुक्तों आदि को ही करना था . परन्तु चार्ट में देखिये सभी विभागों ने अपना निर्धारित व्यय नहीं किया . अर्थात प्रायः सभी नौकर शाह शाही ठाट बात से तो रहते रहे परन्तु उन्होंने गरीब जनता के धन का उपयोग नहीं किया . महिला कल्याण विभाग कि एक महिला कर्मचारी ने जब यह समाचार पढ़ा तो बहुत दुखी होते हुए कहा , ‘’आँगन बाड़ी में महिलायें –बच्चे आते थे परन्तु उनके लिए आहार के लिए पैसे न होने से बेचारे वैसे ही चले जाते थे और देखो ये इतना-इतना रुपया धरे बैठे रहे और अब वापस कर रहे हैं .”

झारखंड में रूपये खर्च न कर पाने कि पुरानी परंपरा रही है जो पिछले १० वर्षो में सरेंडर किये गए अरबों रुपयों से स्पष्ट होती है .इससे तीन बाते स्पष्ट हो जाती हैं – पहली ,अयोग्य अधिकारियों को योजना बनाना ही नहीं आता .वे ए सी कमरों में बैठ कर अललटप्पू ढंग से कुछ भी बजट बना देते हैं .दूसरी उन्हें राज्य में चलने वाली योजनाओं का कोई ज्ञान नहीं है , न ही उन्हें कुछ जानने की आवश्यकता है .इसलिए (तीसरी)राज्य में जो व्यय किये जायेंगे घपलों और भ्रष्टाचार से घिरे होंगे . इतने छोटे से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा अरबों रुपयों के घोटाले के लिए विश्व में प्रसिद्द हो चुके हैं. यदि वर्तमान में कोई नेता या अधिकारी भ्रष्टाचार में नाम नहीं कमा रहा है तो यह अवस्था भ्रष्टाचार कि संभावना को समाप्त नहीं करती है . काश ये नौकर न होकर योग्य प्रशासक होते तो आज देश कि यह स्थिति न होती .

अंग्रेजों ने भारत को एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था दी थी जिसके कारण देश का शासन चल रहा है .काश ये प्रशासक योग्य होते तो देश कि यह स्थिति न होती .भारत में लोकतंत्र कभी रहा ही नहीं . प्रजातंत्र (जिसमें ५ वर्षो में जनता अपना राजा चुनकर पुनः असहाय प्रजा बन जाती है ) था, तो अब यह सामंतवाद में परिवर्तित हो गया है जिसमें देश के कुछ चुने हुए सामंत, क्षत्रप देश को बांटकर मौज कर रहे हैं . जनता सबको टुकुर-टुकुर देख रही है जैसे कोई बड़ा तमाशा होने वाला हो .

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

बिल्ली और बन्दर

बिल्ली और बन्दर 
दो बिल्लियाँ साथ थीं रहती 
साथ खेलतीं , साथ दौड़तीं 
खाने  का जब अवसर आता
 आपस में वे खूब झगड़तीं  .

एक बिल्ली ने रोटी पाई
 रोटी लेकर घर को आई 
दूसरी को भी भूख लगी थी 
दोनों में छिड़ गई लड़ाई .

लड़ते-लड़ते थक गईं दोनों 
भूखी बैठ लगी सुस्ताने 
बन्दर मामा उधर से निकले 
लगे उनका झगडा सुलझाने .

बन्दर एक तराजू लाया 
दो टुकड़े कर लगा तौलने 
जो टुकड़ा भारी पड़  जाता 
काट उसे लगता  खुद खाने .

रोटी तोड़ वह खाता जाता 
भूखी बिल्लियाँ देखती जाएँ 
 बन्दर की चालाकी समझीं 
अपने लड़ने पर अब पछ्ताएं। 
.
बिल्ली बोली बन्दर मामा से 
तुम जाओ हम बाँट के खाएं 
बन्दर बोल म्हणत मेरी 
क्यों हम रोटी छोड़ के जाए ?

बची रोटी को मुंह में डाल 
बन्दर ने अपनी भूख मिटाई 
बिल्लियों की तरह ठगे जाते हैं 
 जो आपस में करें लड़ाई .